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Hindi Poetries on Love | Love Poems in Hindi

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Hindi love poems _ Dosto aap ne agar kabhi pyar kiya hoga to usme hone wale ahasaso se to aap parichit honge. Pyar me hone wale ahasas aur bhi meethe aur pyare ho jate hai jab unhe kisi kavita ke madhayam se prakat karte hai. Hindi love Poetries unhi kavitao ka ek sangarah hai jo apke ahsason ko phir se jinda kar dega, unme nayi urja bhar dega.

Hindi Love Poetries – प्रेम कवितायें

प्रिय!……. लिखकर! नीचे लिख दूँ नाम तुम्हारा!
कुछ जगह बीच मे छोड़ नीचे लिख दूँ सदा तुम्हारा!!
लिखा बीच मे क्या? ये तुमको पढ़ना है!
कागज़ पर मन की भाषा का अर्थ समझना है!
जो भी अर्थ निकालोगी तुम वो मुझको स्वीकार है..
झुके नयन ..मौन अधर.. कोरा कागज़ अर्थ सभी का प्यार है!

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इस दिसम्बर बाजारों में सीजन"सेल" का चल रहा है,
धंधा यहां पर सारा मोहब्बतों के खेल का चल रहा है !!

ये वह दौर है जहां सारे कबूतर ही बे-रोजगार हो गए,
अब चिट्ठी कौन बांधेगा जमना ई-मेल का चल रहा है !!

ये हमारा इश्क भी किसी चक्रवृद्धि ब्याज की तरह है,
लाख किश्त देने पर भी मुकदमा बेल का चल रहा है !!

मैं अब तलबगार नहीं तुम्हारा शहर तुम्ही को मुबारक,
इल्म है हिंदुस्तान में मसला ईंधन तेल का चल रहा है !!

मैं अपने गमों को चाय की प्याली में घोलकर पीता हूं,
जुबां पे जिक्र अब भी आंखों के खेल का चल रहा है !!

Hindi Poem about Love | उसकी याद में

जुदाई के गमसें मैं पार हो जाता
गर मुझे तुमसे प्यार हो जाता

तुझसे नफरत बहुत ज़रूरी थी
ये ना करते तो प्यार हो जाता

ये इबादत ही रास्ता दिखाती हैं,
न होता वो,मैं गुनहगार हो जाता

गर पुछता कोई मुझे सच्चाई,
हँसके जरा मैं शर्मसार हो जाता

रक़ीब हैं कौन, मत बताओ मुझे
हो सके तो मैं परवरदिगार हो जाता

चाहता हूँ की एक दुकान खोलूँ वहां,
हमारे बीच कुछ तो सरोकार हो जाता

नाम तक लिखा नही हैं गज़लमें,
इश्क़ फिरसे मुझे बेशुमार हो जाता

एक ही तमन्ना और वजूद मुकम्मल हैं
हर आशिक कहे, काश मैं केदार हो जाता
केदार पाध्ये

कोई खास रिश्ता नहीं हमारे दरमियाँ
लेकिन एक अजीब सी तकरार है

मानो किसी दूसरे जनम में मिलें हों
और एक दूसरे पर हमारा उधार है

पहचानते भी नहीं अभी और जानते भी हैं
किसी पुराने जनम का अधूरा सा प्यार है

कभी मिले नहीं मगर हमेशा साथ रहते है
मैं शामिल हूँ उसमे और वो मुझमे शुमार है

बृहस्पत को नुक्कड़ पर खड़ा मिलता हूँ मैं
उसकी गली में एक पीर की मज़ार है

खानदानी हक़ीम कल कह रहा था मुझसे
'ख्वाब' ये फितूर है या कोई खुमार है
---- कवि 'ख्वाब '

Love Poems in Hindi | कुछ कह भी दो अब

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एक सिरा है हाथ में उसके एक सिरा है जंगल में
पांव में रस्सी बांध के मुझ को छोड़ दिया है जंगल में

पेड़ पे तुमने इश्क़ लिखा था मेरी बाइक की चाबी से
पेड़ तो कब का सूख गया वो इश्क़ हरा है जंगल में

बढ़ते बढ़ते बस्ती एक दिन मेरा घर खा जाएगी
बस ये सोच के इक दीवाना ख़ौफ़ज़दा है जंगल में

मातम करने चिड़ियाँ बैठी काँच जड़ी दीवारों पर
इसका ये मतलब है कोई पेड़ कटा है जंगल में

सारा जंगल साथ में उसके लैला लैला करता था
अब हम किस किस को बतलाएं कौन मिला है जंगल में

-सैय्यद सरोश आसिफ

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मैं तो जलने को तैयार हूँ कोई जलाए मुझको।
मेरे सामने ही मेरी चिता में सुलाये मुझको।

रिश्तेदारों को खुश करने में ये उमर बीती।
कैसे नाराज होंगे यह कोई बताए मुझको।

थक गया हूं दुनिया का दस्तूर निभाते निभाते।
इनकी आगोश से अब कोई छुड़ाए मुझको।

वजूदो-अदम की फिकर अब करे कौन यहाँ पर।
इसका खौफ अब न कोई दिखाए मुझको।

अब इस किराये के मकां में दम घुटता है मेरा।
मेरे अपने घर का रस्ता तो कोई बताए मुझको

- सत्य प्रकाश

उसकी कत्थई आँखों मे हैं, जंतर वंतर सब
चाकू वाकू, छुरियां वुरियां, खंज़र वंजर सब

जिस दिन से तुम रुठीं, मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वदार, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए, कपडे वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

जाने मै किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया वरिया, कश्ती वस्ती, लंगर वंगर सब

इश्क़ विश्क के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
सागर वागर, मंजर वंजर, जौहर वोहर सब

तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला है
रावण वावन, लंका वंका, बन्दर वंदर सब..
--------- राहत इंदौरी

Hindi romantic Poem | इतना भी अब क्या इतराना

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

ज़रूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
 
मदद करनी हो उसकी
यार का धाढ़स बंधाना हो
बहुत देरीना रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

बदलते मौसमों की सैर में
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

किसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं


-मुनीर नियाज़ी

ये अदा ये शोखियाँ बादे-सबा से कम नहीं,
लग रहीं तुम आज साड़ी में बला से कम नहीं.

किसलिए ज़िद पे हो तुम, लब से वो अपने हाँ कहे,
मुस्कुरा के सर झुकाना भी रज़ा से कम नहीं.

कोई तो मैंने ख़ता की थी जो आया उस पे दिल,
उस जफ़ागर से मुहब्बत भी सज़ा से कम नहीं.

इस तरह हो जाऊँगा मजनूं में,रांझे में शुमार,
तुम मुझे पागल भी कह दो तो दुआ से कम नहीं.

क्यूँ लबों से काम लूँ,सबको पता चल जाएगा,
बहते अश्कों की खनक भी तो सदा से कम नहीं.

जिसको भी हो आपसे बस झूठ की उम्मीद हो,
आइना होना ज़माने में सज़ा से कम नहीं.

--- अभिराज

मुहूरत निकल जाएगा----

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा।
साँस की तो बहुत तेज रफ्तार है,
और छोटी बहुत है मिलन की घड़ी,
आँजते-आँजते ही नयन बावरे,
बुझ न जाए उम्र की फुलझड़ी,

सब मुसाफिर यहाँ, सब सफर पर यहाँ,
ठहरने की इजाजत किसी को नहीं,
केश ही तुम न बैठी गुँथाती रहो,
देखते-देखते चाँद ढल जाएगा।

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा।

झूमती गुनगुनाती हुई यह हवा,
कौन जाने कि तूफान के साथ हो,
क्या पता इस निदासे गगन के तले,
यह हमारे लिए आख़िरी रात हो,

जिंदगी क्या समय के बियाबान में,
एक भटकती हुई फूल की गंध है,
चूड़ियाँ ही न तुम खनखनाती रहो,
कल दिए को सवेरा निगल जाएगा।

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा।

यह महकती निशा, यह बहकती दिशा,
कुछ नहीं है, शरारत किसी शाम की,
चाँदनी की चमक, दीप की यह दमक,
है, हँसी बस किसी एक बेनाम की,

है लगी होड़ दिन-रात में प्रिय! यहाँ,
धूप के साथ लिपटी हुई छाँह है,
वस्त्र ही तुम बदलकर न आती रहो,
यह शर्मसार मौसम बदल जाएगा।

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा।

होठ पर जो सिसकते पड़े गीत ये,
एक आवाज के सिर्फ मेहमान है,
ऊँघती पुतलियों में जड़े जो सपन,
वे किन्हीं आँसुओं से मिले दान हैं,

कुछ न मेरा न कुछ है तुम्हारा यहाँ,
कर्ज के ब्याज पर सिर्फ हम जी रहे,
माँग ही तुम न बैठी सजाती रहो,
आ गया जो महाजन न टल पाएगा।

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा।

कौन श्रृंगार पूरा यहाँ कर सका?
सेज जो भी सजी सो अधूरी सजी,
हार जो भी गुँथा सो अधूरा गुँथा,
बीन जो भी बजी सो अधूरी बजी,

हम अधूरे, अधूरा हमारा सृजन,
पूर्ण तो एक बस प्रेम ही है यहाँ,
काँच से ही न नजरें मिलाती रहो,
बिंब का मूक प्रतिबिंब छल जाएगा।

देखती ही न दर्पण रहो प्राण! तुम
प्यार का यह मुहूरत निकल जाए।
--
--------गोपालदास नीरज जी

Poetry in Hindi on Love | तुम्हे भी मेरी याद आती है क्या

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जब सूरज निकलने से पहले चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देगी,

माँ की आरती शुरू करते ही दूध वाले अंकल बेल बजाएंगे,

अख़बार वाला आया की नहीं, और मेरी चाय कहा है से पापा के दिन की शुरुआत होगी,

मेरी छड़ी कहा रख दी walk के लिए देर हो रही, कहते हुए दादा जी दादी को गुस्से से देखेंगे,

Sumi उठ जा school के लिए देर हो जाएगी, कहते हुए दीदी अपने बाल संवारेगी,

नाश्ते की टेबल पर सबकी हड़बड़ाहट संभालते हुए, अजी आज घर जल्दी आना, माँ पापा को बोलेंगी,

Sumi टिफिन रख लिया ना कहते हुए दादी गेट तक छोड़ने आयेंगी,

बस की हॉर्न सुनते ही दौड़ कर रोड साइड जाते ही दादा जी का चिल्लाना..

Sumi सम्भल कर

दोस्तों से मिलने की खुशी में पुराने झगड़े भूल जाएंगे,

History वाली ma'am को अब हिटलर नहीं बुलाएंगे,

सारे होमवर्क समय पर करके दिखायेंगे,

बस अब और नहीं जीना ऐसे चारदीवारी में,

हमे फिर से उड़ना है, फिर से वही मस्ती वही शरारत करनी है

हमे फिर से पढ़ना है, अपने सपने पूरे करने है,

हम इस देश की उज्जवल भविष्य है,

हमे अपना देश फिर से स्वर्ग बनाना है

हाँ अब और नहीं जीना ऐसे, हमे फिर से मुस्कुराना है

हमे सबको साथ लाना है, Social distancing नहीं हमे साथ मे त्यौहार मनाना है

हमे मिट्टी में खेलना  है, खुली हवा में  साँस लेना है

हमे फिर से जिंदगी अपने हिसाब से जीना है।
✍️✍️ Suman Tiwary

🌷🌷ग़ज़ल 🌷🌷

मौज-ओ-तलात़ुम से डर जाने का नहीं,
भंवर में कश्ती, छोड़कर जाने का नहीं !!

निकला हैं जब कुछ कर गुजरने की चाह में,
तूफान से घबराने का, उखड़ जाने का नहीं !!

दो बच्चे है मेरे काम की तलाश में निकला हूं,
मर जाने का पर, खाली हाथ घर जाने का नहीं !!

रुपया ही बहुत है, दीनार-व-दिरहम के लिए,
अपने वत़न को छोड़कर, क़त़र जाने का नहीं !!

अज़ीज़-मन मुहब्बत कर दिल लगा वफा कर,
लेकिन बर्बाद हो जाने का उजड़ जाने का नहीं !!

जज़्बात पे अपने क़ाबू रख "शिवांश" सुना नहीं,
'राहत' साहब कहते बुलाती हैं मगर जाने का नहीं !!

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