यदि आप हंसी के लिए तैयार हैं तो ये मजेदार हिंदी कहानी आपकी हंसी से पेट को दुखा देंगी। ये कहानी वित्तीय स्थिति, जीवन के तंत्र और नैतिक मूल्यों के बारे में हैं। इस कहानी को पढ़ने से आपको न केवल मनोरंजन मिलेगा बल्कि आप इनसे कुछ न कुछ सीख भी पाएंगे। तो बैठिए, धीरे से सांस लीजिए और इस मजेदार कहानी के साथ हंसी के लिए तैयार हो जाइए!
भूरी क्रांति
आखिरकार आज वह दिन आ ही गया जिसका पूरे चमचम गांव वालों को इंतजार था | हो भी क्यों न पूरे 1 वर्ष के अथक परिश्रम के बाद उनकी भूरी क्रांति सफल हो पायी थी|

विधायक जी भी आ चुके थे जिनके कर-कमलों से चमचम गांव में बने उस सुलभ शौचालय का उद्घाटन करना था, जो भूरी क्रांति के माध्यम से सफल हुई थी। हाजमोला पांडे जी जिनके सुझाव पर ही इस क्रांति का नाम भूरी क्रांति पड़ा विधायक जी को इस भूरी क्रांति की कहानी बता रहे थे |
क्रांति की शुरुआत उस रात को ही हो गई थी जब हाजमोला जी( जिन्हें गांव वाले प्यार से हज़्जू जी बुलाते थे) अपने किसी मित्र की पार्टी में गए थे और आदत से मजबूर कुछ ज्यादा ही भोजन ग्रहण कर लिया था | रोज की तरह उस दिन भी सुबह-सुबह हज्जू जी पुरुखो का चिर-परचित लोटा लेकर रेल की पटरी पर पिछले दिन के पाचन क्रिया का परिणाम देखने गए थे किंतु आज प्रेशर ज्यादा होने की वजह से थोड़ा जल्दी चले गए थे।
चमचम गांव में एक समय सारणी बनी हुई थी जिसका नाम लोटा पार्टी समय सारणी थी जिसमें बुजुर्गों को पहले वरीयता दी गई थी | जैसे मंगेश जी को 5:00 बजे,चौधरी जी को 5:15 बजे इत्यादि | समय सारणी बनाते समय शताब्दी ट्रेन का विशेष ध्यान रखा गया था जो कि चमचम गांव से 7:00 बजे गुजरती थी |
सभी को 15 मिनट का समय प्राप्त था किंतु मल्लू जी को कब्ज की शिकायत होने के कारण 30 मिनट का समय मिला था | इस समय सारणी के हिसाब से हज्जू जी का समय 7:15 से 7:30 तक था किंतु पार्टी में खाए गए गुलाब जामुन के प्रेशर के कारण 7:00 बजे ही लोटा लेकर रणभूमि में पहुंच गए|
हाँ, ट्रेन की पटरी चमचम गांव वालों के लिए हल्का होने का मतलब युद्ध लड़ने के बराबर ही था। क्योंकि उस पटरी पर अपना प्रेशर, ट्रेन की गति के हिसाब से रखना पड़ता था। अगर ट्रेन पैसेंजर है, तब तो आप एक बार आजा-आजा झलक दिखलाजा वाला गाना गाते हुए आराम से मिशन पूरा कर सकते हैं। किंतु ट्रेन के सुपरफास्ट होने की दशा में मिशन को अंजाम देना किसी खतरे से कम नहीं होता था।
आज शायद शताब्दी ट्रेन थोड़ी लेट थी, और हज्जू जी का प्रेशर ज्यादा उन्होंने अपने लोटे को जमीन पर रखकर मिशन के लिए अति आवश्यक पर्दे हटाए और मिशन के अगले पड़ाव के लिए जैसे ही बैठे ट्रेन के आने की आहट हुई किंतु हज्जू जी इस पड़ाव में इतने आगे निकल चुके थे कि बीच में रुकना मुश्किल था|
ट्रेन करीब आती जा रही थी ट्रेन के आगे बढ़ने के साथ-साथ हज्जू जी अपना प्रेशर भी बढ़ाए जा रहे थे| किंतु जब तक उनका पूरा मिशन समाप्त हो पाता तब तक ट्रेन काफी करीब आ चुकी थी। जैसे तैसे हज्जू जी पटरी से उठकर पीछे हटे किंतु इस जल्दबाजी में अपना लौटा उठाना भूल गए जो अब ट्रेन के साथ कहीं और ही चला गया था |
अब बारी थी इस पूरे मिशन के सबूत को मिटाने की पानी तो गिर चुका था फिर हज्जू जी ने बगल पड़े गवाही समाचार पत्र के टुकड़े से अपना सबूत साफ किया | पूरे मन से सुबह -सुबह का पहला कार्य ना होने के कारण पूरे दिन कार्यालय में अपने सहकर्मी से शरमाते हुए ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाते रहें।
इतनी परेशानी और शर्मिंदगी के बाद हज्जू जी ने पूरे गांव के सहयोग से एक सुलभ शौचालय बनाने की बात सोची। शौचालय बनवाने को भूरी क्रांति नाम दिया गया | जिसके अध्यक्ष खुद हज्जू जी और कोषाध्यक्ष माणिकलाल जी बने|

पूरी कहानी सुनाते सुनाते उद्घाटन का समय हो चुका था। विधायक जी ने फीता काटकर उद्घाटन किया | कोकोनट पाड़े ने स्वरचित कविता सुनाइ
हम अब शौचालय में जाएंगे खुले।
खुल के हल्का हो पाएंगे।
ना होगा ट्रेन का डर।
ना भटकेगें मच्छर इधर – उधर।
कागज पत्थर से सबूत मिटाना, अब और नहीं
चमचम गांव की स्वच्छता, अब दूर नहीं।
सर्वसम्मति से अज्जू जी को उस शौचालय के प्रथम प्रयोग की अनुमति मिली। अज्जू जी खुशी में डूबी हुई नम आखें लिए हुए शौचालय में अपना पराक्रम दिखाना शुरू किया। अपनी अध्यक्षता में इस सफल क्रांति पर इतने खुश हुए कि कुछ ज्यादा ही जोश में आकर परफारमेंस देने लगे जिसके कारण अज्जू जी के प्राण- पखेरू उड़ गए |
लोगों ने उनकी मौत को इस सफलता की शहादत मानते हुए गांव के चौराहे पर उनकी मूर्ति बनाने का निर्णय लिया। लोगों का मत था कि उनकी मृत्यु जिस स्थिति में हुई है हूबहू वही स्थिति मूर्ति में दिखाई जाए|
किंतु सरकार से अनुमति न मिलने के कारण उनकी साधारण सी मूर्ति उनके चिर परिचित लोटे के साथ बनवाई गई | विधायक जी ने वादे के अनुसार शहीद हज्जू जी के बड़े बेटे को सरकारी नौकरी दिलवाई|
अब चमचम गांव के लोग पूरे मजे के साथ अपने सुलभ शौचालय का उपयोग करते हैं और अन्य गांव वालों को भी इसके फायदे बताते हैं।
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